Nowadays, aggression is on the rise in children

वर्तमान समय में बच्चों में बढती आक्रामकता

बच्चों की आक्रामकता और परिवारों में बुजुर्गों की घटती भूमिका: एक गहन विश्लेषण

आज के डिजिटल युग में बच्चों की आक्रामकता में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। यह समस्या विशेष रूप से परिवारों में बुजुर्गों की घटती भूमिका और विस्तारित पारिवारिक संरचनाओं में गिरावट के कारण जटिल हो गई है। जब परिवार छोटे और एकल सेटअप में बदल रहे हैं, तो दादा-दादी और अन्य बुजुर्गों की भूमिका कम हो रही है, जिससे बच्चों के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इस लेख में, हम इस मुद्दे की गहराई से जांच करेंगे और इसके संभावित समाधान पर भी चर्चा करेंगे।

परिवारों में बुजुर्गों की घटती भूमिका और इसके प्रभाव

✍️छोटे परिवारों का उदय

समाज में तेजी से हो रहे बदलावों के साथ, परिवारों के आकार में भी बड़ा बदलाव आया है। पहले के समय में, संयुक्त परिवार एक सामान्य परिदृश्य थे जहां दादा-दादी, नाना-नानी और अन्य बुजुर्ग सदस्य एक साथ रहते थे। इन परिवारों में बुजुर्गों की उपस्थिति केवल पारंपरिक ज्ञान और अनुभव ही नहीं, बल्कि बच्चों के लिए आदर्श और नैतिक मार्गदर्शन भी प्रदान करती थी। बुजुर्ग परिवार के संरक्षक के रूप में काम करते थे और बच्चों की शिक्षा, व्यवहार और सामाजिक मूल्य स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।

लेकिन आजकल, अधिकतर लोग छोटे परिवारों को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके कई कारण हैं, जैसे कि उच्च जीवनस्तर, बदलती जीवनशैली, और पेशेवर और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों की वृद्धि। छोटे परिवारों में, माता-पिता अपने बच्चों के लिए समय निकालने में सक्षम नहीं होते हैं, जिससे बच्चों को भरपूर प्रेम और ध्यान की कमी का सामना करना पड़ता है। इस कमी के परिणामस्वरूप, बच्चों का आंतरिक और बाहरी विकास प्रभावित होता है।

✍️माता-पिता की व्यस्तता

छोटे परिवारों में माता-पिता की व्यस्तता एक अन्य प्रमुख कारण है जिसके चलते बच्चों की आक्रामकता बढ़ रही है। आजकल के माता-पिता अपने कामकाज और व्यक्तिगत जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि वे अपने बच्चों को पर्याप्त समय और ध्यान नहीं दे पाते। जब माता-पिता बच्चों के साथ पर्याप्त समय नहीं बिताते हैं, तो बच्चे अपने मनोरंजन के साधन स्वयं चुनने के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं। इस स्थिति का परिणाम अक्सर डिजिटल मनोरंजन के रूप में सामने आता है, जिसमें सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेम्स प्रमुख स्थान रखते हैं।

डिजिटल दुनिया का प्रभाव

✍️हिंसात्मक और अश्लील सामग्री

सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेम्स जैसे प्लेटफार्मों पर बच्चों का अत्यधिक निर्भरता उनके मानसिक और भावनात्मक विकास पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। उदाहरण के लिए, पब्जी और फोर्टनाइट जैसे गेम्स में हिंसात्मक और आक्रामक सामग्री की भरपूर मात्रा होती है। इन गेम्स में लगातार खेलना बच्चों के व्यवहार को हिंसात्मक बना सकता है। वे आक्रामकता को एक सामान्य व्यवहार के रूप में देखने लगते हैं और वास्तविक दुनिया में भी इसी तरह का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।

इन गेम्स में हिंसा, आक्रमण और अन्य नकारात्मक तत्वों के संपर्क में आने से बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। वे सही और गलत का अंतर भूल सकते हैं और छोटी-छोटी बातों पर आक्रामक हो सकते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर उन्हें अश्लील और भ्रामक जानकारी भी मिलती है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को और भी प्रभावित कर सकती है।

✍️सोशल मीडिया का प्रभाव

सोशल मीडिया आजकल के बच्चों की जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। यहां पर वे न केवल अपने दोस्तों और परिवार के साथ जुड़े रहते हैं, बल्कि विभिन्न प्रकार की सामग्री का भी सामना करते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर होने वाली प्रतिस्पर्धा, ‘लाइक’ और ‘फॉलोअर्स’ की दौड़, और भ्रामक जानकारी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। वे अपनी आत्म-संवेदनशीलता, आत्म-सम्मान, और सामाजिक स्वीकृति की तलाश में भ्रमित हो सकते हैं, जिससे उनका आक्रामक व्यवहार और भी बढ़ सकता है।

सोशल मीडिया पर बच्चे अक्सर भ्रामक और असत्य जानकारी के संपर्क में आते हैं, जो उनके नैतिक और सामाजिक मूल्यों को प्रभावित कर सकती है। वे गलत जानकारी पर भरोसा करने लगते हैं और वास्तविक जीवन में समस्याओं का सामना करने में असमर्थ हो सकते हैं।

आक्रामकता का सामाजिक प्रभाव

✍️परिवारिक संबंधों पर असर

बच्चों के बढ़ते आक्रामक व्यवहार का प्रभाव पारिवारिक संबंधों पर भी पड़ता है। जब बच्चे अपने माता-पिता, मित्रों या शिक्षकों के साथ छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते हैं, तो यह पारिवारिक वातावरण को तनावपूर्ण बना देता है। माता-पिता को बच्चों के आक्रामक व्यवहार को समझने और उचित तरीके से निपटने की आवश्यकता होती है। यदि माता-पिता बच्चों के आक्रामक व्यवहार को नजरअंदाज करते हैं, तो यह समस्याएँ और भी गंभीर हो सकती हैं।

अक्सर, आक्रामकता बच्चों के आत्म-सम्मान और आत्म-प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकती है। जब बच्चे अपने माता-पिता, दोस्तों और शिक्षकों के साथ असहमति और संघर्ष करते हैं, तो इससे उनकी सामाजिक स्वीकृति और आत्म-संवेदनशीलता में कमी आ सकती है। इसका प्रभाव उनके समग्र विकास पर पड़ता है और वे समाज में सही तरीके से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते।

✍️स्वस्थ मानसिक विकास

बच्चों के आक्रामक व्यवहार का उनके मानसिक विकास पर भी असर पड़ता है। उन्हें सही और गलत के बीच अंतर करने में कठिनाई होती है। उनका गुस्सा कभी-कभी इतना भयावह हो सकता है कि वे छोटे-बड़े का भेद भी भूल सकते हैं। इस स्थिति में, बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित होती है और वे सही निर्णय लेने में असमर्थ हो सकते हैं।

इसके अलावा, बच्चों का आक्रामक व्यवहार उनके आत्म-संवेदनशीलता और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है। यदि बच्चों की आक्रामकता पर सही समय पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर सकते हैं, जैसे कि चिंता, अवसाद, और आत्म-संवेदनशीलता की कमी।

समाधान और उपाय

✍️परिवार के साथ समय बिताना

बच्चों की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिए, परिवार के सदस्यों को बच्चों के साथ अधिक समय बिताना चाहिए। माता-पिता को अपने व्यस्त शेड्यूल से समय निकालकर बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताना चाहिए। यह समय बच्चों के भावनात्मक और मानसिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। उन्हें ज्ञानवर्धक गतिविधियों में शामिल करें और परिवारिक संवाद को प्रोत्साहित करें।

परिवारिक समय को विशेष और आनंदमय बनाने के लिए विभिन्न गतिविधियाँ अपनाई जा सकती हैं, जैसे कि खेल खेलना, कहानियाँ सुनाना, या साथ में खाना बनाना। इन गतिविधियों से बच्चों को परिवार के साथ जोड़ने में मदद मिलती है और वे खुद को अधिक सुरक्षित और प्रेमपूर्ण महसूस करते हैं।

✍️प्राचीन संसाधनों का उपयोग

बच्चों के खेलने के लिए प्राचीन और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना भी एक प्रभावी उपाय हो सकता है। आधुनिक डिजिटल उपकरणों के स्थान पर, बच्चों को बाहरी गतिविधियों में शामिल करना चाहिए, जैसे कि बगीचे में घुमाना, खेलकूद करना, और अन्य शारीरिक गतिविधियाँ। इन गतिविधियों से बच्चों की शारीरिक और मानसिक स्थिति में सुधार होता है और वे डिजिटल दुनिया से दूर हो सकते हैं।

प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने से बच्चों को न केवल शारीरिक स्वास्थ्य में लाभ होता है, बल्कि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हो सकता है। वे नए अनुभव प्राप्त करते हैं और अपनी सामाजिक क्षमताओं को विकसित कर सकते हैं।

✍️मनोचिकित्सक की सलाह

यदि बच्चों में आक्रामकता और अन्य मानसिक समस्याओं के लक्षण स्पष्ट हों, तो उन्हें मनोचिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। मनोचिकित्सक बच्चों की मानसिक स्थिति का मूल्यांकन कर सकते हैं और उचित सलाह प्रदान कर सकते हैं। यह पेशेवर मदद बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

मनोचिकित्सक बच्चों के व्यवहार, सोचने की क्षमता, और भावनात्मक स्थिति का विश्लेषण करते हैं और उनके लिए उचित उपचार योजना तैयार करते हैं। इससे बच्चों की मानसिक स्थिति में सुधार होता है और वे अपने आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित करने में सक्षम हो सकते हैं।

✍️मित्रों के साथ समय बिताना

बच्चों को उनके मित्रों के साथ अधिक समय बिताने का अवसर देना भी एक महत्वपूर्ण उपाय है। दोस्ती और सामाजिक गतिविधियाँ बच्चों के सामाजिक कौशल को सुधारने में मदद करती हैं। मित्रों के साथ समय बिताने से बच्चों को सहयोग, सहानुभूति, और सामाजिक व्यवहार की महत्वपूर्ण बातें सीखने का अवसर मिलता है।

मित्रों के साथ समय बिताने से बच्चों का आत्म-संवेदनशीलता और आत्म-सम्मान भी बढ़ सकता है। वे अपने दोस्तों के साथ सकारात्मक और सहयोगपूर्ण संबंध स्थापित कर सकते हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है।

✍️प्राणायाम और ध्यान

सुबह के समय बच्चों को प्राणायाम और ध्यान करवाना उनके मानसिक शांति और स्थिरता के लिए लाभकारी हो सकता है। प्राणायाम और ध्यान के अभ्यास से बच्चों की मानसिक स्थिति में सुधार होता है और वे तनावमुक्त महसूस करते हैं। यह उन्हें आत्म-नियंत्रण, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता, और भावनात्मक स्थिरता प्रदान करता है।

प्राणायाम और ध्यान के नियमित अभ्यास से बच्चों की भावनात्मक स्थिति में सुधार होता है और वे अपने आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित करने में सक्षम हो सकते हैं। यह उनकी सोचने-समझने की क्षमता को भी बढ़ा सकता है और उन्हें बेहतर निर्णय लेने में मदद कर सकता है।

निष्कर्ष

आज के डिजिटल युग में बच्चों की आक्रामकता एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन चुकी है, जिसका मुख्य कारण परिवारों में बुजुर्गों की घटती भूमिका और एकल परिवारों का बढ़ता चलन है। इस समस्या का समाधान करने के लिए, परिवारों को बच्चों के साथ समय बिताने, प्राचीन संसाधनों का उपयोग करने, मनोचिकित्सक की सलाह लेने, मित्रों के साथ समय बिताने, और प्राणायाम और ध्यान को अपनाने की आवश्यकता है। इन उपायों के माध्यम से हम बच्चों के आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित कर सकते हैं और उन्हें एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।

समाज की जिम्मेदारी है कि हम इस महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर ध्यान दें और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उचित कदम उठाएं। परिवार, स्कूल और समाज को मिलकर काम करना होगा ताकि हम बच्चों को एक सकारात्मक और सहयोगपूर्ण वातावरण प्रदान कर सकें, जो उनके स्वस्थ और संतुलित विकास के लिए आवश्यक है।

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