परिवारवाद का देश पर प्रभावअगर देश का प्रधानमंत्री किसी परिवारवादी पार्टी से चुना जाए, तो यह देश को 5-10 वर्षों या उससे भी अधिक समय के लिए पीछे धकेल सकता है। ऐसे नेता राजनीति को अपने परिवार की विरासत मानते हैं और उनके पास राजनीतिक अनुभव की कमी होती है। वे पदों पर नियुक्ति और हटाने को अपनी व्यक्तिगत शक्ति मानते हैं, जबकि उन्हें यह समझने में कठिनाई होती है कि किस पद के लिए कौन सा व्यक्ति उपयुक्त है।परिवारवाद और तुष्टिकरण की नीतियां न केवल पार्टी में अव्यवस्था और बिखराव उत्पन्न करती हैं, बल्कि देश की प्रगति को भी रोकती हैं। अगर एक काल्पनिक नेता, जैसे 'अरुण कुमार', प्रधानमंत्री बनते हैं, तो वे संभवतः पुरानी योजनाओं को दोहराएंगे और नए घोटालों का कारण बन सकते हैं, जिससे देश की स्थिति और भी खराब हो सकती है।