Young Youth become Prime Minister

देश की राजनीतिक स्थिरता पर परिवारवाद का प्रभाव

देश की राजनीतिक स्थिरता पर परिवारवाद का प्रभाव

1. परिवारवाद का भविष्य पर प्रभाव

अगर देश का प्रधानमंत्री किसी परिवारवादी पार्टी से चुना जाए, तो देश 5-10 वर्षों या इससे भी अधिक समय के लिए पीछे चला जाएगा। इसका कारण यह है कि ऐसे नेताओं के पास राजनीति के प्रति पर्याप्त अनुभव और समझ की कमी होती है। वे राजनीति को अपने परिवार की विरासत मानते हैं और अपने पूर्वजों के नाम को अपने अधिकार के रूप में देखते हैं।

2. अनुभवहीनता और राजनीतिक समझ

ये नेता पदों पर नियुक्ति और हटा देने के अधिकार को व्यक्तिगत शक्ति के रूप में मानते हैं, जबकि उन्हें यह समझने में कठिनाई होती है कि किसी विशेष पद के लिए कौन सा व्यक्ति अधिक सक्षम है और किसे बेहतर भूमिका निभा सकता है। वे केवल अपने परिवारवाद को बढ़ावा देने में व्यस्त रहते हैं, जिससे पार्टी में अव्यवस्था और बिखराव की स्थिति उत्पन्न होती है।

3. पार्टी प्रबंधन और प्रशासनिक क्षमता

इस प्रकार, जो व्यक्ति अपनी पार्टी को सही से नहीं चला सकता, वह देश को कैसे चला पाएगा? एक ऐसा व्यक्ति जो जमीनी स्तर पर पूरी तरह से अज्ञात है, देश के प्रशासन को कैसे संभालेगा? वे तो संभवतः सिर्फ पुरानी और असामान्य योजनाओं को ही लागू करेंगे, जैसे कि आलू से सोना बनाना या किसानों के खेतों में मार्बल लगाना।

4. संभावित नकारात्मक परिणाम

अगर ऐसे लोगों को देश का प्रधानमंत्री बना दिया गया, तो देश की स्थिति गंभीर हो जाएगी। आज कांग्रेस की राजनीति भी इसी परिवारवाद के कारण पिछड़ गई है, कि उन्हें कई क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर एक नया संगठन बनाने की आवश्यकता पड़ी, और फिर भी सत्ता में काबिज होने की संभावना संदेहास्पद है। यदि संगठन सत्ता में भी आ जाए, तो उसे संभालना उनके लिए कठिन होगा, क्योंकि हर संगठन की अपनी विचारधारा होती है, और इनमें विचारधारा की लड़ाई होने के कारण संगठन बिखर जाएगा।

5. परिवारवादी नीतियों के दीर्घकालिक प्रभाव

अब एक काल्पनिक नेता, मान लीजिए ‘अरुण कुमार’, के लिए यह चुनौती है कि वे अपनी पार्टी को संभालें या देश को। अगर ‘अरुण कुमार’ की पार्टी की तुष्टिकरण की नीतियों और अनावश्यक आरक्षण को लागू किया गया, तो देश की प्रगति फिर से रुक जाएगी, क्योंकि इन नीतियों से केवल चुनाव में ही जीत मिल सकती है, लेकिन युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार अवसर नहीं मिलेंगे। आज की दुनिया में देश की प्रगति उसके युवाओं के माध्यम से होती है।

6. पुराने घोटालों की पुनरावृत्ति

अरुण कुमार अगर प्रधानमंत्री बनते हैं, तो संभवतः वे वही पुरानी योजनाएं वापस लाएंगे जो उनके पूर्वजों के समय में लागू थीं, और इस स्थिति में देश दिन-ब-दिन पिछड़ेगा। इसके अलावा, पुराने घोटालों की तरह नए घोटाले भी शुरू हो सकते हैं, क्योंकि सभी घोटाला करने वाले एक साथ होंगे, और अरुण कुमार चाहकर भी इनको नहीं रोक पाएंगे, क्योंकि उन्हें अपनी कुर्सी भी बचानी होगी।

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